राजनीति में रहकर हर कोई हनुमान नही हो सकता

राजनीति में रहकर हर कोई हनुमान नही हो सकता


राजनीति में रहकर हर कोई हनुमान नही हो सकता, जो विपरीत परिस्थितियों व संसाधनों से झूझते हुए भी सत्ता के खिलाफ सड़क से लेकर सदन तक गांव, गरीब, किसान, मजदूर, दलित, अल्पसंख्यक के लिए संघर्ष करता रहे!

जैसा कि अनुमान था भारत वाहिनि पार्टी के घनश्याम तिवाड़ी कांग्रेस में शामिल होकर लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं! आज राहुल गांधी की उपस्थिति में कांग्रेस जॉइन से पूर्वानुमान सही साबित हो गया कि सत्ता के खिलाफ सुर निकालने से पूर्व ही उनकी बांसुरी बेसुरी हो गयी। तिवाड़ी ही क्यों पिछले एक दशक से मैने दर्जन भर नेताओ को देखा जिन्होंने पार्टियों से बगावत तो बड़े जोर शोर से की मगर ज्यादा समय राज के मजे से दूर नही रह सके, और तमाम विचारधारा विरोधाभासों को खूंटी पर टांग फिर से उन्ही हाईकमानों के आगे जाकर नतमस्तक होते दिखे! मगर पिछले डेढ़ दशक से हनुमान बेनीवाल जिस तरह दोनों ही पार्टियों की सत्ता के खिलाफ आम आवाम की लड़ाई लड़ रहे हैं, वैसा बिरले ही नेता कर पाते हैं। सरकार को नाकों चने ऐसा नेता ही चबा सकता है जिसके पास न धोने को हो न निचोडने को! राजनीति में आकर जो अपनी सात पीढ़ियों को तारना चाहे, वो राजनीति का बिजनेस तो कर सकता हैं परंतु सत्ता से लड़ाई नही लड़ सकता!

लोकसभा उपचुनाव में अलवर सीट से एक बड़े किसान नेता ने किसान मुद्दों को लेकर निर्दलीय नामांकन किया। हमने भी 5-7 चोले पाजामे प्रेस कर तैयार किए और उनके समर्थन में प्रचार करने राजधानी के रास्ते अलवर निकल पड़े। मगर ब्यावर के पास जाते जाते पता चला कि हमारे किसान नेताजी ने तो फॉर्म ही वापिस उठा लिया। बाद में पता चला कि उनके गृह जिले में बनी 4 दुकानों के आगे सड़क पर उतरी सीढ़ियों पर राजस्थान सरकार के इशारे पर नगरपालिका प्रशासन ने JCB चला दी और नेताजी ने उपचुनाव में सरकार को उखाड़ फेंकने को भरी हुंकार चुपचाप पुनः जेब मे रख ली। जनता भी जागरूक होने से ऐसे नेताओं को ज्यादा चलने नही देती और हाल ही विधानसभा चुनाव में किसानों की आवाज बनकर उतरे उन्ही नेताजी को 700 वोट में समेट दिया। जब हम किरोड़ी मीणा से मिले तो बड़े ही निराश होते बोले कि आखिर कितने दिन राज से दूर रहेंगे! हालांकि बाद में वो सत्ता का हिस्सा अवश्य बने, मगर जनता ने उन्हें नकार दिया!

एक पटवारी गांव में नया-नया आया तो गली का कुत्ता पीछे पड़ गया। पटवारी पास ही पड़े पत्थरों के ढेर पर चढ़ा फिर भी कुत्ता पीछे पड़ा रहा तो नीम के पेड़ पर चढ़ गया। काफी देर बाद भी कुत्ता नीचे से नही हटा तो पटवारी ने चिढ़ते हुए कहा कि ' तू ठहरा कुत्ता। एक अंगुल भी जमीन तेरे पास होती तो मैं बताता कि पटवारी क्या चीज होती है!' एक पटवारी इतना ताकतवर हो सकता है तो फिर राज के पास तो बहुत ताकत होती है। तभी तो आपके चुने विधायक-सांसद चाहे वो सत्ता पक्ष के हो या विपक्ष के, सरकार की दमनकारी अन्यायपूर्ण नीतियों के खिलाफ भी बोल नही पाते हैं! उन्हें अपने धंधे खराब होने का डर सताता है। स्वघोषित किसान मुख्यमंत्री रहे एक बड़े नेताजी ने जोश-जोश में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा से जुड़े जमीन के मामले का प्रश्न विधानसभा में लगा दिया। 24 घन्टे में ही सरकार ने नेताजी के बड़े-बड़े शोरूम की जमीन कन्वर्जन सम्बंधित फाइल चला दी। प्रश्न का उत्तर लेना तो दूर नेताजी पूरे सत्र विधानसभा ही नही आए!

तमाम नेताओं-पार्टियों के हथियार डालने के बावजूद भी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के नेता-कार्यकर्ता उस लोह से बने हैं जिन्हें अपने मे मिलाना तो दूर, कोई इंच भर झुका तक नही सकता। और यह जनता के विश्वाश का ही परिणाम था कि आम आदमी के बलबूते चुनाव लड़ने के बावजूद दोनों दलों को नकारते हुए जनता ने RLP को 9 लाख वोट दिए। सत्ता मिले न मिले मगर जनता का यह विश्वास और RLP कार्यकर्ताओं का उनके लिए संघर्ष भविष्य में भी जारी रहेगा जो आगे चलकर देश की राजनीति के लिए एक नजीर बनेगा।विडियो देखे

0 Response to "राजनीति में रहकर हर कोई हनुमान नही हो सकता "

एक टिप्पणी भेजें

Ads on article

Advertise in articles 1

advertising articles 2

Advertise under the article