हाथरस गैंगरेप पर सिस्टम, धर्म और धर्म के ठेकेदारो की पोल खोलता प्रेमाराम सियाग का लेख

हाथरस गैंगरेप पर सिस्टम, धर्म और धर्म के ठेकेदारो की पोल खोलता प्रेमाराम सियाग का लेख

हाथरस गैंगरेप पर सिस्टम, धर्म और धर्म के ठेकेदारो की पोल खोलता प्रेमाराम सियाग का लेख



सर्वसमाज,साधु समाज और स्वर्ण समाज ऐसी जांच एजेंसीयाँ है कि घटना घटित होने से पहले फैसला देश के सामने रखती है और फिर पूरा देश अर्थात जनता,सियासत,सत्ता व न्यापालिका इंसाफ करने की लड़ाई लड़ती है और कुछ जातीय सेनाएं इंसाफ का तराजू कंधों पर उठाने को सड़कों पर उतरती है।


यह इस देश की विडंबना है कि एजेंडा धर्मखोर तय करते है,मुद्दा राजनेता बनाते है,सड़कों पर जातीय व धार्मिक सेनाएं जंग लड़ती है,मीडिया माहौल बनाता है और आस्था व विश्वास का चोला ओढ़कर मी लार्ड इंसाफ नहीं करते बल्कि फैसला सुनाते है।


सिकंदर का जनाजा निकल रहा था।अर्थी के दोनों तरफ हाथ बाहर थे।जनाजे में लाखों की भीड़ थी।ज्यादातर लोगों के मन मे सवाल खड़ा हुआ कि अर्थी/जनाजा तैयार करने वालों ने बड़ी भारी भूल कर दी है।जो जीवन भर विजेता बनने को भागता रहा,जिसने विश्वविजेता होने का खिताब हासिल किया हो उसके जनाजे को सजाने वालों से ऐसी भूल की अपेक्षा प्रजा को नहीं होती है।भीड़ के बीच से किसी ने सवाल किया कि ये हाथ बाहर क्यों है?


एक 60 साल का बुजुर्ग सिर झुकाकर चल रहा था उसने कहा "जब सिकंदर मरने जा रहा था तब मुझे कहा था कि जनाजा गूंथने के जानकार होने के नाते तुमसे गुजारिश है कि जब मरूँ तो मेरे जनाजे में मेरे हाथ बाहर रखना।सब लोगों को पता चलना चाहिए कि दुनियाँ को फतेह करने की भूख में जीवनभर भागने वाला सिकंदर जब लौटा तो दोनों हाथ खाली थे बस मैने उसी आदेश का पालन किया है।"


इस देश मे ज्यादातर धर्म गुरु व राजनेता समझते रहे है कि हमने जो जीवन मे बातें की है उनको सम्मान देने के लिए भेड़ों को नियुक्त करके हम लौटेंगे और उसी के लिए भारतीय समाज की नादान भेड़ें हमारे लिए सदियों तक लड़ती-मरती रहेगी!उन्होंने कभी न सोचा कि हमारे झूठ व कर्मगति का हिसाब करने वाले लोग भी इस देश मे पैदा हो चुके है और वो सवाल खड़े करेंगे तो हम ही नहीं हमारे से पहले गुजर चुके बड़े-बड़े महात्मा भी गिर पड़ेंगे!


सियासत में बैठे लोग समझ रहे है कि हमसे ज्यादा कोई ज्ञानी नहीं है और जो गेम खेल रहे है वो सोच रहे है कि हमारे बच्चे भी यूँ ही खेलते रहेंगे!जो गृहस्थ जीवन छोड़कर, सभ्यता के संघर्षों से पलायन किये लोग यह समझ रहे है कि सदियों तक हमारी मूर्खताओं को यह देश/समाज ढोता रहेगा,जो मी लॉर्ड सोच रहे कि हमारे फैसले सदा इंसाफ बनकर भारत का भविष्य तय करते रहेंगे वो भारी भ्रम में है!


भारत की फिजाओं में यह मूर्खों की मंडली है जो अपने बच्चों का गला घोंटकर खुद के भावी सम्मान की नींव रखने की मूर्खता कर रही है।इनके बच्चे 100-200 साल बाद जब इनकी समझ,निर्णय व फैसलों का इतिहास पढ़ेंगे तो इन नीरे मूर्खों की मूर्खताओं पर हँसेंगे।इससे जुदा इनका कोई इतिहास नहीं हो सकता।


भारत के सिस्टम की मति मारी गई है।भारत की व्यवस्था विकलांग है।राजनेता पूंजी के गुलाम हो चुके है।धर्म की दुकाने व धार्मिक दुकानदार अपने अस्तित्व की जंग लड़ रहे है इसलिए इनके बारे में लिखकर समय जाया नहीं करना चाहिए।ये अपने कुकर्मों से खुद ही निपट जाएंगे।कठुआ से उन्नाव तक,मल्लापुरम से लेकर मलकानगिरी तक,निर्भया से लेकर मनीषा तक,गीता से लेकर कुरान तक,क्राइष्ट से लेकर ऋषि-मुनि की फाइट तक!हर फील्ड में,हर विभाग में,हर क्षेत्र में एक से  बढ़कर एक मानवता को डुबोने के उल्लू हर शाख पर बैठे है।


संविधान से बड़ा कोई ग्रंथ नहीं।भारतीय सेना से बड़ी कोई सेना नहीं,भारतीय समाज से बड़ा कोई समाज नहीं।गलत हाथों में देश हो तो गधा भी शेर की पीठ पर बैठकर बाकी जानवरों को डराने की दुकान खोल लेता है।दुःख इस बात का नहीं है कि हर ऐरे-गैरे ने दुकान लगा ली बल्कि दुःख इस बात का है कि संवैधानिक संस्थाएं निजी दुकानों में तब्दील हो गई!

प्रेमाराम सियाग की फेसबुक वॉल से

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