क्या है? राजद्रोह का कानून जिसे कांग्रेस हटाना चाहती है
नई दिल्ली, भारत
क्या है राजद्रोह कानून
इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) की धारा 124 ए में राजद्रोह की परिभाषा के अनुसार अगर कोई व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है, ऐसी सामग्री का समर्थन करता है, राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 124 ए में राजद्रोह का मामला दर्ज हो सकता है. देश विरोधी संगठन के खिलाफ अगर कोई अनजाने में भी संबंध रखता है. संगठन का किसी भी तरीके से सहयोग करता है तो उसके खिलाफ भी राजद्रोह का मामला बन सकता है. इस कानून के तहत दोषी पाए जाने पर अधिकमत उम्र कैद की सजा का प्रावधान है.आजादी से पहले का है कानून
ये धारा अंग्रेजों के जमाने की है. तब अंग्रेज इस कानून का इस्तेमाल उन भारतीयों के खिलाफ करते थे, जो अंग्रेजों की बात मानने से इन्कार कर देते थे. ये धारा 1870 में वजूद में आई थी. 1908 में बाल गंगाधर तिलक को उनके लिखे एक लेख की वजह से 6 साल की सजा सुनाई गई थी और ये सजा उन्हें इसी कानून के तहत दी गई थी. इसके अलावा अखबार में तीन लेख लिखने की वजह से 1922 में महात्मा गांधी को भी राजद्रोह का आरोपी बनाया गया था. तब से अब तक कानूनों में कई बदलाव हुए हैं, लेकिन ये धारा बनी हुई है और पिछले कुछ सालों में इस धारा को लेकर खूब विवाद भी रहे हैं.
राजद्रोह को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था
1962 में केदारनाथ बनाम बिहार राज्य केस में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि सरकार की आलोचना या फिर प्रशासन पर टिप्पणी करने भर से राजद्रोह का मुकदमा नहीं बनता. सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की संवैज्ञानिक बेंच ने अपने आदेश में कहा था कि राजद्रोह के मामले में हिंसा को बढ़ावा देने का तत्व मौजूद होना चाहिए. महज नारेबाजी करना देशद्रोह के दायरे में नहीं आता.
बलवंत सिंह बनाम पंजाब राज्य के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने 1995 में कहा था कि महज नारेबाजी करना राजद्रोह नहीं है. दो लोगों ने उस समय खालिस्तान की मांग के पक्ष में नारे लगाए थे. और सुप्रीम कोर्ट ने उसे राजद्रोह मानने से इन्कार कर दिया था
इस धारा को खत्म करने वालो का क्या पक्ष है
यह धारा संविधान में दिए गए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का दमन करती है. कानून के जानकारों का तर्क है कि संविधान की धारा 19 (1) ए की वजह से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगे हुए हैं. ऐसे में धारा 124 की ज़रूरत नहीं है. जानकारों का तर्क है कि शांति व्यवस्था बिगाड़ने, धार्मिक उन्माद फैलाने और सामाजिक द्वेष पैदा करने जैसे अपराधों के लिए आईपीसी में पहले से ही अलग-अलग धाराओं में सजा का प्रावधान है. इसिलए अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे इस कानून को खत्म करना चाहते है
कन्हैया और हार्दिक पर लगा था देशद्रोह का मुकदमा
जब भी राजद्रोह का मामला आता है, उसपर विवाद हो ही जाता है. अभी हाल ही में जब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में विवाद हुआ था, तो वहां के 14 छात्रों पर राजद्रोह का केस दर्ज किया गया था. खूब बवाल हुआ तो पुलिस ने कहा कि धाराएं हटा रहे हैं. इससे पहले गुजरात में पाटीदारों के लिए आरक्षण की मांग करने वाले कांग्रेस नेता हार्दिक पटेल के खिलाफ भी राजद्रोह का केस दर्ज हुआ था. जेएनयू में भी छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार और उनके साथी उमर खालिद पर राजद्रोह का केस दर्ज हुआ था. कांग्रेस के जमाने में 2012 में कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को संविधान से जुड़ी भद्दी और गंदी तस्वीरें पोस्ट करने की वजह से गिरफ्तार किया गया था और यही धारा लगाई गई थी.
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