नागौर मे जीत का नगाड़ा बजाने ऊतरे हनुमान बेनीवाल
नागौर, राजस्थान
नागौर में जीत का नगाडा बजाने मैदान में उतरे हनुमान बेनीवाल के लिए लोकसभा चुनाव उनकी नाक का सवाल बन गया है.खींवसर से विधानसभा चुनाव जीतने के बाद हनुमान बेनीवाल के साथ जाट फैक्टर बहुत मजबूत हो गया है.पूरे नागौर में एनडीए के उम्मीदवार हनुमान बेनीवाल के समर्थकों ने इस तरह का माहौल बना दिया है कि ऐसा लग रहा है मानों कांग्रेस की ज्योति मिर्धा ने चुनाव से पहले ही अपनी हार स्वीकार कर ली हो.हालांकि मिर्धा परिवार का राजनैतिक करियर भी बहुत मजबूत माना जाता है,लेकिन बेनीवाल की आंधी में इस बार कोई नहीं बचने वाला.नागौर के लोग बेनीवाल का इतना पसंद करने लगे है कि अब वे उन्हे सीधा संसद में ही देखना चाहते है.
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लेकिन ज्योति मिर्धा को का पलडा भी कुछ कम नजर नहीं आ रहा है. डॉक्टरी का पेशा छोड़कर समाज सेवा का रास्ता चुनकर राजनीति में आई ज्योति मिर्धा इसी सीट से सांसद रह चुकी है.ज्योति मिर्धा कोे नागौर संसदीय क्षेत्र में वैसा ही प्यार और समर्थन मिलता था, जैसा अमेठी में गांधी परिवार को. उनके परिवार का राजस्थान के नागौर में बहुत सम्मान है. उनके दादा नाथूराम मिर्धा मारवाड के गांधी के रूप में प्रसिद्ध थे. वो 6 बार सांसद रहे. 2009 में जब वह यहां से चुनाव लड़ीं तो सोनिया गांधी उनके लिए प्रचार करने आईं थीं. उस दौरान जो जनसैलाब उनके समर्थन में उमड़ा था, उसे देख सोनिया भी अभिभूत हो गईं थीं.उनके दादा नाथूराम मिर्धा को तीन दलों की सरकार में रहकर मंत्री बनने का गौरव प्राप्त है. इसके बावजूद वो अपने ही भतीजे कांग्रेस उम्मीदवार रामनिवास मिर्धा से चुनाव हार गए थे. वर्ष 1977 के लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस उत्तर भारत की सारी सीटें हार गई थीं, तब नाथूराम मिर्धा नागौर की अकेली सीट कांग्रेस के टिकट पर जीते थे.
हालांकि हनुमान बेनीवाल को भी हल्के में लेना कांग्रेसियों की बडी भूल होगी.हनुमान बेनीवाल को 2008 के विधानसभा चुनाव में खींवसर से बीजेपी की टिकट मिल गई. कांग्रेस ने उनके सामने डॉ. सहदेव चौधरी को टिकट दी थी. बीएसपी की टिकट से लड़ रहे दुर्ग सिंह चौहान ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया था. इस मुकाबले में सफलता बेनीवाल की झोली में गिरी. इस चुनाव में हनुमान के खाते में गए 58,602 वोट. उनके निकटतम प्रतिद्वंदी रहे दुर्ग सिंह, जिन्हें 34,292 वोट हासिल हुए. कांग्रेस के सहदेव चौधरी महज 17,124 वोट ही हासिल कर पाए.लंबे संघर्ष के बाद आखिरकार बेनीवाल विधायक बन गए.इसके बाद 2018 के विधानसभा चुनाव में बेनीवाल ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी तो बनाई,लेकिन 2019 के चुनाव में अब बेनीवाल ने एनडीए के प्रत्याक्षी के तौर पर मैदान में है.ऐसे में नागौर में जीत का नगाडा बजाने लोगों की जाट नेता जोर शोर से चुनावी जमीन पर उतर चुके है.
नागौर में जीत का नगाडा बजाने मैदान में उतरे हनुमान बेनीवाल के लिए लोकसभा चुनाव उनकी नाक का सवाल बन गया है.खींवसर से विधानसभा चुनाव जीतने के बाद हनुमान बेनीवाल के साथ जाट फैक्टर बहुत मजबूत हो गया है.पूरे नागौर में एनडीए के उम्मीदवार हनुमान बेनीवाल के समर्थकों ने इस तरह का माहौल बना दिया है कि ऐसा लग रहा है मानों कांग्रेस की ज्योति मिर्धा ने चुनाव से पहले ही अपनी हार स्वीकार कर ली हो.हालांकि मिर्धा परिवार का राजनैतिक करियर भी बहुत मजबूत माना जाता है,लेकिन बेनीवाल की आंधी में इस बार कोई नहीं बचने वाला.नागौर के लोग बेनीवाल का इतना पसंद करने लगे है कि अब वे उन्हे सीधा संसद में ही देखना चाहते है.
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लेकिन ज्योति मिर्धा को का पलडा भी कुछ कम नजर नहीं आ रहा है. डॉक्टरी का पेशा छोड़कर समाज सेवा का रास्ता चुनकर राजनीति में आई ज्योति मिर्धा इसी सीट से सांसद रह चुकी है.ज्योति मिर्धा कोे नागौर संसदीय क्षेत्र में वैसा ही प्यार और समर्थन मिलता था, जैसा अमेठी में गांधी परिवार को. उनके परिवार का राजस्थान के नागौर में बहुत सम्मान है. उनके दादा नाथूराम मिर्धा मारवाड के गांधी के रूप में प्रसिद्ध थे. वो 6 बार सांसद रहे. 2009 में जब वह यहां से चुनाव लड़ीं तो सोनिया गांधी उनके लिए प्रचार करने आईं थीं. उस दौरान जो जनसैलाब उनके समर्थन में उमड़ा था, उसे देख सोनिया भी अभिभूत हो गईं थीं.उनके दादा नाथूराम मिर्धा को तीन दलों की सरकार में रहकर मंत्री बनने का गौरव प्राप्त है. इसके बावजूद वो अपने ही भतीजे कांग्रेस उम्मीदवार रामनिवास मिर्धा से चुनाव हार गए थे. वर्ष 1977 के लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस उत्तर भारत की सारी सीटें हार गई थीं, तब नाथूराम मिर्धा नागौर की अकेली सीट कांग्रेस के टिकट पर जीते थे.
हालांकि हनुमान बेनीवाल को भी हल्के में लेना कांग्रेसियों की बडी भूल होगी.हनुमान बेनीवाल को 2008 के विधानसभा चुनाव में खींवसर से बीजेपी की टिकट मिल गई. कांग्रेस ने उनके सामने डॉ. सहदेव चौधरी को टिकट दी थी. बीएसपी की टिकट से लड़ रहे दुर्ग सिंह चौहान ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया था. इस मुकाबले में सफलता बेनीवाल की झोली में गिरी. इस चुनाव में हनुमान के खाते में गए 58,602 वोट. उनके निकटतम प्रतिद्वंदी रहे दुर्ग सिंह, जिन्हें 34,292 वोट हासिल हुए. कांग्रेस के सहदेव चौधरी महज 17,124 वोट ही हासिल कर पाए.लंबे संघर्ष के बाद आखिरकार बेनीवाल विधायक बन गए.इसके बाद 2018 के विधानसभा चुनाव में बेनीवाल ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी तो बनाई,लेकिन 2019 के चुनाव में अब बेनीवाल ने एनडीए के प्रत्याक्षी के तौर पर मैदान में है.ऐसे में नागौर में जीत का नगाडा बजाने लोगों की जाट नेता जोर शोर से चुनावी जमीन पर उतर चुके है.
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